क्या हम आधी आबादी को उसका हक दे पाएंगे ………मंगल चंद सैनी
विश्व महिला दिवस पर विशेष
लेखक… मंगल चंद सैनी रिटायर्ड तहसीलदार
क्या हम आधी आबादी अर्थात महिलाओं को उनका हक दे पाएंगे यह प्रश्न अब तक अनुत्तरित है । कहने को तो ‘ यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता ‘ हजारों वर्षों से हम पढ़ते आ रहे हैं किंतु पूजना तो दूर उसका वाजिब हक भी नहीं दे रहे हैं । क्या समाज में आज भी नारी को भोग की वस्तु नहीं माना जा रहा । उसके साथ लिंगभेद जैसी असमानता हम दूर नहीं कर पाए हैं । यदि संतान नहीं हो तो पत्नी को कसूरवार ठहराया जाता है । दहेज के लिए जिंदा जला दिया जाता है क्या कसूर है उसका ? पिता ने दहेज नहीं दिया तो वह क्या करें । जरा सोचें जिसने अपनी कोख में 9 माह अपने को रखकर जन्म देती है खुद को चाहे गंदगी में गीले कपड़ों में रहना पड़े किंतु बच्चे को जरा भी तकलीफ न हो ऐसी होती है मां । जिसको हम जन्म ही नहीं लेने देते कोख में ही मार देते हैं या बाद में लावारिस फेंक देते हैं । एक अबला नारी के साथ सामूहिक बलात्कार करते पुरुष अपनी मां बहन बेटी के बारे में क्यों नहीं सोचते । महिला अपने पिता के घर में पढ़ाई के साथ-साथ घर का कामकाज संभालती है शादी के बाद ससुराल में कोल्हू के बैल की तरह खटती है पति सास ससुर देवर ननद की सेवा करती है । वास्तव में महिला त्याग की मूर्ति है । महिलाएं वर्तमान समय में प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों से मुकाबला कर रही हैं खेल जगत राज नीति सैन्य व रक्षा मनोरंजन आर्थिक विज्ञान सहित किसी भी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं । पुतलीबाई जीजाबाई देवी अहिल्या मदर टेरेसा महादेवी वर्मा कस्तूरबा इंदिरा गांधी एलिजाबेथ मार्गरेट थैचर सरोजनी नायडू बेनजीर भुट्टो हिलेरी क्लिंटन पार्वती सीता सरस्वती द्रोपती गार्गी इन महिलाओं को कौन नहीं जानता ।
अस्तु, महिला दिवस मनाना तभी सार्थक होगा जब हम शुरुआत अपने घर से करें , सब जानते हैं कि घर में पत्नी माता पुत्री को हम कितना सम्मान देते हैं हम नवरात्र में देवियों की पूजा तो करते हैं किंतु घरवाली देवी को पूजना तो दूर बराबर का दर्जा भी देना नहीं चाहते । बस इसी बात पर अमल करने हेतु और समाज में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने हेतु महिला दिवस मनाया जाता है । आशा है हम इस पर अवश्य गौर करेंगे ।